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कविता – कुछ ऐसा जीवन हो (contest)

Bhavbhoomi
Bhavbhoomi
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कुछ ऐसा जीवन हो

उषा में विहगों के गायन से नींद खुले
रवि -किरणों से नित नव स्फूर्ति मिले
संध्या की नीरवता तन में अलस जगाए
सुन्दर स्वप्नों की नींद निशा में आए
स्वच्छ समीर से प्रफुल्ल तन -मन हो
कुछ ऐसा जीवन हो .

वर्षा में वारिद झम -झम बरस भिगाए
कोकिल वसंत में मधुर तान सुनाए
शीतऋतु में नरम धूप की ऊष्णता
शरद निशा में शशिकिरणों की सुन्दरता
प्रकृति के विविध रूपों का अभिन्दन हो
कुछ ऐसा जीवन हो .

हरित द्रुमों पर अभय पंछियों का घर
अरण्य में निर्भीक विचर सकें वनचर
निष्ठुर व्याधों के न कुलिश तीर चले
कोई न जिए भय -आशंका के भाव तले
अनुराग -उल्लास भरा कण -कण हो
कुछ ऐसा जीवन हो .

द्वेष , कुटिलता से जीवन न हो दूषित
कपट , प्रवंचना से न होना पड़े व्यथित
सुन्दर गीत सरलता -समता के बजते हों
परमार्थ के भाव स्वार्थ को पराभूत करते हों
जटिल नियम और पाखंडों का न बंधन हो
कुछ ऐसा जीवन हो .

न विजय का दंभ , न कचोट पराजय की
मानव समाज में धारा बहे समन्वय की
विकास के लिए न हो प्रकृति का अति दोहन
इच्छाएँ असीम , किन्तु करे मनुज नियंत्रण
समरसता के सन्देश से भरा हर क्षण हो
कुछ ऐसा जीवन हो .

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