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आज भींग लूँ मैं जल की धारों में

Bhavbhoomi
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आज भींग लूँ मैं जल की धारों में

तीव्र पवन के झोंके ,हटा ग्रीष्म का ताप
दौड़ –दौड़ वारिद रहे गगन में दूरी नाप
झूम उठे तरुदल , थिरक रहे हैं पत्ते
संग पवन के मानो अठखेली करते
झम –झम बरसे मेघ दिशा चारों में
आज भींग लूँ मैं जल की धारों में .

ऊँचे भवनों में मानो बंदी तन –मन
प्रकृति से दूर रहो तो नीरस है जीवन
वसन जो भींगेगे तो सूख पुनः जाएँगे
आज भींगने का आनंद छोड़ न पाएंगे
कितने संदेश छिपे हैं इन फुहारों में
आज भींग लूँ मैं जल की धारों में .

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