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एक शिक्षक के सवाल

Bhavbhoomi
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मेरे प्यारे छात्रों ,

अब जबकि समाप्त हो चुकी हैं

परीक्षाएँ दसवीं –बारहवीं की

रह गए हैं मेरे मन में

वर्तमान व्यवस्था को लेकर

कई अनुत्तरित सवाल  .

ली गयी परीक्षा के दौरान

तलाशी –दर –तलाशी

टटोली गयी है जेब तुम्हारी

देखा गया कई बार तुम्हें

शक भरी निगाह से

पर संदेह के घेरे में

केवल तुम ही नहीं रहे

हम भी रहे

सी सी टी वी की जद में

केवल तुम ही नहीं

हम भी रहे .

सवाल है

जब तुम और हम दोनों ही

भरोसे के काबिल नहीं

तो क्या मतलब है

पढने –पढ़ाने का ?

कई बार असहज हुआ हूँ मैं

देखकर भय और तनाव

तुम्हारे मासूम चेहरे पर .

मैं देखता हूँ समाज में

कई कानून तोड़ने वाले

आरोपी संगीन जुर्मों के

घूम रहे हैं खुलेआम

घूम रहे हैं

रंगीन बत्ती वाली गाड़ियों में

उनमें से कई पास तो

ऊँचा ओहदा भी है .

आखिर उनकी तलाशी क्यों नहीं ?

उन पर कैमरे की नजर क्यों नहीं ?

सिर्फ एक जगह सख्ती से क्या होगा

हर जगह सुधारनी होगी व्यवस्था .

फ़िर एक बात और है

मुझे नाराजगी इस बात से भी है

सत्ता –व्यवस्था से

विद्यालय के जर्जर भवन ,

पानी का सही प्रबंध नहीं

भीषण गर्मी में कमरों में पंखे नहीं

जब वक्त हो तुम्हें पढ़ाने का

भेजा जाता है हमें चुनाव केन्द्रों पर

नेताओं का भविष्य बनाने

विसंगतियाँ ,ढेर विसंगतियाँ

नजर आती हैं

कैसे दूर होंगी ये विसंगतियाँ ?

मैं सबको बताना चाहता हूँ

वीक्षक होने से पहले मैं

शिक्षक हूँ

परीक्षार्थी होने से पहले तुम

विद्यार्थी हो .

—– विकास कुमार

(अभी बिहार में दसवीं -बारहवीं की परीक्षाएँ  संपन्न हुई हैं .)

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