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शिक्षा और चुनाव

Bhavbhoomi
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2014 में लोकसभा चुनाव , 2015 में विधानसभा चुनाव और अब बिहार में पंचायत चुनाव हो रहे हैं . लगातार तीन वर्षों से चुनाव हो रहे हैं .एक लोकतांत्रिक देश में चुनाव बिलकुल सामान्य सी बात है .किन्तु प्रश्न यह है कि मात्र चुनाव संपन्न करा लेने से लोकतंत्र मजबूत हो जाएगा ? क्या आम जन की आवश्यकता चुनाव तक ही सीमित है ? आजादी से अब तक भारत में बहुत से चुनाव हुए ,पर क्या देश से गरीबी ,अशिक्षा ,बेरोजगारी जैसी समस्याओं का अंत हो गया ?
अफसोस की बात यह है कि मीडिया के चतुर –सुजान (विशेषकर समाचार पत्र वाले )जिस उत्साह से किसी चुनाव का लेखा –जोखा प्रस्तुत करते हैं वे उस उत्साह से न तो इससे होने वाली समस्याओं पर चर्चा करते हैं ,न इन्हें दूर करने के उपाय पर ध्यान देते हैं .अगर कोई इन मुद्दों पर चर्चा करना भी चाहे तो ये लोग उससे किनारा कर जाते हैं .
किसी भी चुनाव कार्य में बड़ी संख्या में शिक्षकों को लगया जाता है .बिहार में अभी मैट्रिक की परीक्षा की कापियों का मूल्यांकन हो रहा है जिसके किए बड़ी संख्या में शिक्षक लगे हुए हैं . पिछले वर्ष जिन छात्रों ने नवीं में प्रवेश लिया था उनकी वार्षिक परीक्षा नहीं ली जा सकी है .परिणाम यह कि अप्रैल शुरू हुए दस दिन हो गए हैं ,किन्तु छात्रों का नए सत्र में प्रवेश नहीं हो पाया है .विद्यालयों में असमंजस की स्थिति है .छात्र परेशान हैं .पर विडंबना है कि प्रशासन तंत्र इस बात की चिंता में लगा है कि पंचायत चुनाव कैसे संपन्न होंगे ? शिक्षा –व्यवस्था को कमजोर कर कैसे मजबूत लोकतंत्र की नींव रखी जाएगी –  यह समझ से परे है . कब तक हमारे पढ़े –लिखे लोग पढाई –लिखाई को कम महत्त्व की चीज समझते रहेंगे ?  क्या देश सिर्फ राजनीतिक -प्रशासनिक  ढाँचे के सहारे चलता है  ? शिक्षा -व्यवस्था को कमजोर कर  कैसी राजनीति होगी  ,कैसा प्रशासन होगा ?
यह भारतीय लोकतंत्र की कमजोरी है कि इतने दशक बीत जाने के बाद भी ऐसी व्यवस्था नहीं खोजी जा सकी है जिससे चुनाव कार्य में कम शिक्षकों को लगाया जाए . हमारे प्रशासकों के साथ विकट समस्या यह है कि वे इस सदर्भ में स्वयं तो कुछ मौलिक सोच नहीं पाते और शिक्षकों की राय लेना नहीं चाहते . ऐसा नहीं है कि गंभीरतापूर्वक सोचने से कोई उपाय सामने नहीं आएगा . पर हमारे यहाँ मौलिक सोच तथा नए प्रयोग में बहुत समय लगता है . जो लोग भारत को विश्वगुरु के रूप में देखना चाहते हैं उन्हें यह बात ठीक से समझ लेनी चाहिए कि छात्रों तथा शिक्षकों का अमूल्य समय बर्बाद करके अगर चुनाव और राजनीति होती रही तो भारत कभी विश्वगुरु नहीं बन पाएगा . अतः यह आवश्यक है कि चुनाव कार्य से शिक्षकों को मुक्त कर चुनाव के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाए .

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